tulsi ke paudhe ki puja kyu karte hai | | prachin kal me tulsi ko pavitra kyu mana gya hai.


तुल्सी  के पौधे की पूजा क्यों करते है | | प्राचीन काल में तुल्सी को पवित्र क्यों माना गया है 



तुलसी का पौधा दुबीजी पौधा है हिन्दू धर्म में तुलसी का पौधा सबसे ज्यादा पवित्र माना जाता जाता है| ज्यादातर ज्यादा तर लोग इसे अपने आंगन में , दरवाजे पर या फिर बगीचे में लगाना पसंत करते है | भारतीय सस्कृति में वेदो तथा पुरातन ग्रन्थ दोनो में ही तुलसी के पौधे के गुंडों तथा उपयोगो के साथ साथ लाभों का वर्णन देखने को मिल  जाता है  के आलावा यूनानी दवाइयों , ऐलोथेलपी तथा होमेओथैपी में तुलसी का प्रयोग देखने को मिल जाता है |  
दोस्तों हम आपको ( तुल्सी के पौधे का इतिहास ) और( तुल्सी के महत्त्व) सनातन परम्परा से जुडी कुछ रोचक इतिहास | किस तरह से तुलसी को प्राचीन काल से है इतना महत्त्व दिया गया है , ( तुलसी की पूजा क्यों करते है ) क्या तुलसी के पौधे में कोई जादू है या तुलसी का पौधा चमत्कारी है | वैसे तो दोस्तों  सनातन परम्परा से ही भगवान का जिक्र किया गया है कहा जाती है की ईश्वर का हर जगह वास होता है  चाहे वो पाहड हो पत्थर हो नदी हो या फिर वो पेड़ पौधे ही क्यों न हो , माना जाता है की हर एक पेड़ पौधों में देवी देवता का वास होता है क्युकी पेड़ हमें नकारात्मक शक्तियों से लड़ने की छमता प्रधान करते है और ज्यादा तर पेड़ पौधे तो अपनी सकारात्मक शक्तियों से ही नकारात्मक शक्तियों को नस्ट कर देते है | तुलसी का पौधा भी इनमे से ही एक पौधा है क्युकी ये पौधा औषधि के रूप में भी प्रयोग किया जाता है इसके आलावा इस पौधे में देवीय गुड भी देखने को मिलते है ,
 प्राचीन काल में पुराणों में  तुलसी को भगवन विष्णु की पत्नी बताया गया है तभी से भगवान विष्णु को पत्थर होने का श्राप मिला हुआ है क्युकी भगवान विष्णु ने तुलसी के साथ छल से वरन किया था तभी से भगवान विष्णु को शालिग्राम  के रूप में पूजते है | शालिग्राम रूपी भगवन विष्णु की पूजा बिना तुलसी के होना असंभव है | 

तुल्सी के पौधे की पूजा क्यों करते है

 
प्राचीन काल से ही तुलसी के पौधे की पूजा होती आ रही है लेकिन ऐसा हो क्यों रहा है पूजा है ये किसी को नहीं पता | आज के समय में बहुत ही कम लोग जानते है की तुलसी की पूजा करते क्यों है | 
अगर पौराणिक कथाओ की माने तो राक्षस कुल में जन्मी तुलसी का नाम वृंदा था, वृंदा भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहती थी वो  विष्णु  जी की गहरी भक्त थी वे हमेशा से ही भगवान विष्णु की सच्चे मन से श्रद्धा पूर्ण तरीके से पूजा करती थी | कुछ समय पश्चाद वृंदा का विवाह दानव राज जलंधर के कर दिया माना जाता है जलंधर सागर से  उतप्पन हुए थे उनका जन्म  नहीं हुआ था शादी के बाद वो दोनों बहुत ही शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे थे वृंदा संस्कारी और पतिब्रता पत्नी थी वे अपने पति की आज्ञा का पालन करती थी और कभी भी उनकी ताहिल नहीं करती थी एक वर देवताओ और दानवो में युद्ध छिड़ जाता है जलंधर जब युद्ध के लिए निकर रहे थे तब वृंदा संकल्प लेती है की जब तक आप लोट कर नहीं आ जाते तब तक में भगवन विष्णु  करनी रहूंगी | ये सुन कर जलंधर युद्ध के लिए रावण हो जाते है , बहुत ही भयानक तरीके से हो रहे युद्ध में जलंधर सभी देवताओं को हारते हुए आगे बढ़ता जाता है ये सब देख कर देवता सोचते है की इस तरह तो हम हार जायेंगे तभी कुछ देवता भगवन विष्णु के पास जाते है  बोलते है की ,
जलंधर हम सभी देवताओं को हराता हुआ आगे बढ़ता जा रहा तरह तो देवताओ का अंत हो जायेगा कुछ करिये महाराज ये सब सुन कर भगवन विष्णु संकट में पड़ जाते है एक तरफ तो उनकी परम भक्त वृंदा थी और दूसरी तरह उनके दूसरे भक्त बहुत समय तक सोचने के बाद उन्हें एक सुझाब आता है और वो जलंधर का रूप धारण करके वृंदा के पास जाते है वृंदा उन्हें देख कर  सोचतीं है स्वामी आ गए और वृंदा खड़े हो कर जलंधर के पैर छूने  समय वृंदा की तपस्या भांग हो जाती है और उधर जलंधर युद्ध हर जाता है देवता जलंधर का सर धड़ से अलग कर देते है कुछ समय बाद ये बात वृंदा को विष्णु जी के छल के वारे  में पता पता चलती है तो गुस्से में आ कर वृंदा विष्णु जी को पत्थर का बन जाने का श्राप दे देतीं हैं ये सब सुन कर माता लक्ष्मी तथा सभी देवी देवता वृंदा के पास जाते है सभी ने मिलकर वृंदा से श्राप वापस लेने के लिए कहा लेकिन वृंदा कुछ सुनाने को तैयार ही नहीं थी ही नहीं थी | बहुत समझने के बाद वृंदा अपना श्राप वापस  लेतीं हैं और सती हो जाती है 
कुछ समय बाद जहा पर वृंदा सटी हुए थी वहीँ पर एक पौधा निकल आता है अपने श्राप का पश्चाताप  करते हुए  पौधे को तुलसी नाम  देते है और कहते है की आज से मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिग्राम के  जायेगा और तुलसी के साथ ही शालिग्राम की पुजा होगी | और मै कोई भी भोजन नहीं खाऊंगा जब तक कि मेरे साथ तुलसी की पूजा नहीं होगी | 
तब से कार्तिक मास में तुलसी के साथ शालिग्राम की पुझा होती है और तुलसी का विवाह शालिग्राम के संग होता है  और इसके साथ ही एकादशी को तुलसी के विवाह के पर्व के रूप में मनाया जाता है | 


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