भगत सिंह की जीवन कहानी || Life story of Bhagat singh in hindi


यह तो हम सभी जानते है की हमारा देश 200 वर्षों तक अंग्रेजो का गुलाम रहा /  इस बीच हमरे देश में बहुत से वीरों का जन्म हुआ जिनकी हमें आजादी दिलाने में अहम् भूमिका रही जिनका बचपन से बस एक ही उद्देश्य रहा और वो था आजादी इन्ही वीरों में एक नाम शहीद भगत सिंह का भी आता है जिन्होंने आजदी के लिए आपनी जवानी इस देश के नाम कर दी वो कम उम्र में ही वीर गति वो प्राप्त हो गए लेकिन जाते जाते हमारे देश के लोगों में एक ऐसी आग फूंक कर चले गए जो की कभी न भुजने वाली थी वो आग थी आजादी की आग / भगत सिंह का बचपन से बस एक ही सपना रहा अंगेजी साशन से आजादी और उनका यह सपना 15 अगस्त 1947 को पूरा भी हुआ जिसके परिणाम स्वरूम हम आज एक स्वतंत्र भारत में जी रहे है / तो आज की पोस्ट में हम चर्चा करेंगे शहीद भगत सिंह पर /


Biography of  Bhagat Singh    



जलिया वाला बाघ हत्याकंढ से भगत सिंह को क्या सीख मिली थी ?

तो दोस्स्तों 1907 में इनका जनम हुआ | इनका जन्म ल्यालपुर नाम के गाँव में हुआ था, जो की लाहौर (अभी पाकिस्तान में है ) में है इनकी माँ का नाम विद्यावती कौर था ,और इनके पिता किशन सिंह | इन्होने  लाहौर में एक स्कूल था जो की  ब्रिटिश सरकार का था उसमे पड़ने से भगत सिंह  ने मना  कर दिया |  फिर आखिर कार  भगत सिंह ने दयानद एंग्लो वैदिक स्कूल में अपनी शिक्षा प्रारंभ की , भगत सिंह पढाई में इतना तेज थे की बचपन में जब वो छोटी क्लास में पढ़ा करते थे तब उन्होंने अपने किताबों के आलावा 50 किताब अलग से पढ़ डाली , भगत सिंह को राजनेतिक , सामाजिक की किताब पढना बहुत पसंद था | भगत सिंह के दिमाग में बचपन से लेकर बड़े होने तक उनको वक ही बात खाए जा रही थी वो थी आजादी | वो कही भी उठते और बैठते नही थे शिवाय जहा आजादी के नारे लगाए जाते थे | जब व्भागत सिंह छोटे थे तब उनको एक कांड के बारे में पता चला जो की था जलीय वाला बाघ हत्या कांड जो की 13 April 1919 में हुआ था भगत सिंह वहां पर गये जब की उनके पास कोई साईकिल या मोटर गाढ़ी नही थी इसके बाबजूद वो पैदल - पैदल अपने घर से दूर 40 किलोमीटर जलीय वाला बाघ में गये | फिर भगत सिंह वह से खून से सनी मिटटी को अपने साथ एक बोतल में भरकर लेकर आ गये अपने घर पर और वह पर अपने परिवार से कहनें लगे ये खून उन मेरे देश के सहीदो का है इसका बदला लेना है मुझे उन अंग्रेजों को मार के देश से बहार  निकाल दूंगा मैं  | जब ये छोटे थे और इनके पापा खेती किया करते थे और एक बार इनके पिताजी आम की घुट्ली को जमिन  में घाढ   रहे थे तो  भगत सिंह बोले पिताजी ये क्या कर रहे है आप ऐसा करने से क्या होगा इनके पिताजी बोले की बेटा  ऐसा करने से  आम के पेड आ जायेंगे | फिर भगत सिंह ने पलट के जवाब दिया और बोले की अच्छा ऐसा हो सकता है तोह क्या हम एक बन्दूक को जमीन में घाड़कर बहुत सारे हतियार पा सकते है 

भगत सिंह में आजादी की भावना कैसे उत्पन हुई ?

फिर जब भगत सिंह बड़े हुए तो वो चाहते थे हमे आजादी जल्दी मिले, उस समय  गाँधी जी देश भर में आन्दोलन चला रहे थे और गाँधी जी का कहना था की हम विदेशी चीजों का बहिस्कार करके अंग्रेजों को अपने देश से भगा सकते है इसके लिए उन्होंने एक आन्दोलन चलाया जिसका नाम था असहयोग आन्दोलन, गाँधी के द्वारा चलाये जाने वाला असहयोग आन्दोलन तरकी कर रहा जिसके कारण भगत सिंह बहुत खुश हुए और वो नाचने लग गये ओर बोले अब तो आजादी जल्दी आयेगी लेकिन जल्द ही इस आन्दोलन ने हिंसा का रूप ले लिया जिसके कारण गाँधी जी ने इस आन्दोलन को वापस ले लिए और यह भगत सिंह को अच्छा नहीं लगा वो इस आन्दोलन को कायम रखना चाहते थे और फिर कोंग्रेस दो दलों में बंट गया, गरम दल और दूसरा था नरम दल गरम दल के लीडर आपके भगत सिंह थे और नरम दल के लीडर गाँधी जी थे /  18 अप्रैल 1929 भाग सिंह और बटुकेश्वर नाथ ने मिलकर एक low इंटेंसिटी का बोम तैयार किया और पहुँच गए सेंट्रल असेंबली जहाँ उन्होंने एक खली जगह देख कर  बम को छोड़ दिया क्योंकि बम low इंटेंसिटी वाला था इसकिये कोई नहीं मरा सिर्फ चारो और धुँआ हो गया था फिर उन्होंने असेंबली में कुछ पन्ने फैके जिनपर लिखा था "बहारों को सुनाने के लिए धमाका जरूरी है" अगर वो चाहते तो धुएं की आड़ में वहां से भाग सकते थे लेकिन वो वाही पर खड़े रहे और "इंकलाब जिंदाबाद " के नारे लगाते रहे फिर उन्हें पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और उन्हें फंसी की सजा सुना दी गयी  और वो हस्ते हस्ते वीर गति को प्राप्त गो गए और जाते जाते भारत के लोगों में एक ऐसी आजादी की आग लगाकर चले गए जिसके बाद 15 अगस्त 1947 हमारा देश पूरे तरीके से आजाद हो गया /



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